गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

जानलेवा लापरवाही

जिस महकमे पर रेल मंत्री लालू प्रसाद याद को नाज था, उस पर वह अब शायद ही कर पाएं। वह इस सचाई को अनदेखा कर रहे थे कि मोटे मुनाफ की पटरी पर मौत भी साथ साथ दौड रही है, जिस पर शिकंजा कसना बेहद जरूरी है। जिस 20 लाख करोड के मुनाफे की गठरी बांधे वह कैंब्रिज, स्‍टेंनफोर्ड, आईआईएम जैसे उच्‍च प्रष्‍ितठित विश्‍वविदालयों व संस्‍थानों के बच्‍चों को मैनेजमेंट के गुर सिखा रहे थे, अपने देश की रेल पटरियों पर वे तेज हवा में उडे जा रहे थे। अभी चार दिन पहले फिरोजपुर जिले के हराज गांव के अनमैंड रेलवे क्रासिंग पर स्‍कूली बस के रेल इंजन की चपेट में आ जाने के कारण चार बच्‍चों की मौत हो गई थी। डेढ साल पहले भी फिरोजपुर मोगा रेल मार्ग पर, नया चूहडचक्‍क गांव में अनमैंड रेलवे क्रासिंग पर स्‍कूली बस टरेन की चपेट में आकर महकमे के चेहरे पर कालिख पोत गई थी। ऐसे हादसे सबक दे जाते हैं, परंतु उनको जब तक गंभीरतापूर्वक अमल में नहीं लाया जाता, तब तक बात नहीं बनेगी। ताजा हादसे के िलए जहां रेलवे की कोताही िमम्‍ेदार है, वहीं डराइवर की लापरवाही भी सभी के दिमागों में खल रही है। आिखर क्‍यों हम इस भ्रम में ठहर जाते हैं कि जो भाग्‍य में लिखा होगा, वही होगा। मगर इसका मतलब यह कतई नहीं िक लापरवाही सफल होने जा रहे कार्य का रास्‍ता बुरी तरह बाधित कर दे और नामामयाबी नसीब में लिख दे। यह भी समझ से परे हैं िक पंजाब में, और पूरे फिरोजपुर रेलमंडल में काफी रेलवे फाटकों पर कोई कर्मचारी तैनात ही नहीं है। क्‍यों। क्‍या रेलवे अपने पल्‍ले से पैसे देता है। क्‍या वह मानवरहित रेलवे क्रासिंग पर कर्मचारी तैनात नहीं कर सकता। क्‍या करेगा वह मोटा मुनाफे से तिजोरियां भरकर। रही बात डीएवी स्‍कूल की। यदि यह कायदे कानून पर चलता तो ऐसा हादसा शायद ही होता। अब बात पटियाला राजिंदरा अस्‍पताल हादसे की, जहां की फोटोथेरेपी यूनिट में आग लग जाने के कारण पांच नवजात बच्‍चों की मौत हो गई। वे चिल्‍लाते रहे, मगर मदद के लिए उनके हलक से फूटती आवाज डयूटी पर सो रहे डाक्‍टरों व पैरामेडिकल स्‍टाफ की नींद नहीं तोड सकी। हे भगवान। नवजात बच्‍चों ने उनको उनकी जिम्‍मेदारी का एहसास कराने की भरसक कोशिश की थी, लेकिन वे अपनी नींद में दैवीय अथवा मानवीय खलल बर्दाश्‍त नहीं करना चाहते थे। दैवीय इसलिए की बच्‍चे भगवान का रूप होते हैं। डाक्‍टर व नर्सें क्‍यों नहीं समझ पाए कि वे कितनी संवेदनशील डयूटी कर रहे हैं, जिसमें थोडी सी भी लापरवाही भयानक नतीजे दे सकती है। फिर इतने ज्‍यादा पढे लिखे लोगों के होने का क्‍या लाभ, जिन पर लापरवाही हावी रहती हो। और यदि अस्‍पताल प्रशासन का निक्‍कमापन है तो उसके खिलाफ भी कडे कानूनों के तहत मुकदमा क्‍यों न चलाया जाए। इस मामले में सरकार भी कम जिम्‍मेदार नहीं है, जिसने अस्‍पताल प्रशासन की 100 करोड रुपये की मांग पूरी नहीं की थी। आखिर क्‍यों अस्‍पताल में 20 साल पुरानी फोटोथेरेपी यूनिटों से काम चलाया जा रहा है। अच्‍छा होता यदि वे सरकार से आर्थिक मदद नहीं मिलने पर एक तख्‍ती राजिंदरा अस्‍पताल पर टांग देते, जिस पर साफ शब्‍दों में लिखा होता कि यहां पीलियाग्रस्‍त, सांस व समय पर पहले जन्‍मे बच्‍चों के इलाज की पुख्‍ता व्‍यवस्‍था नहीं है। ऐसा बोलने का साहस लोगों में बहुत कम रह गया है। ऐसे लोग बहुत कम हैं, जो अपने कार्य को धर्म मानकर, अंतिम मानकर बेहद संजीदगी से करते हैं, बिल्‍कुल सैन्‍य अभियान की तरह, जिसमें सफलता व नुकसान की दर काफी कम होती है। हे भगवान लापरवाह लोगों को जगाए।

1 टिप्पणी:

सुधीर राघव ने कहा…

आपने बिल्कुल सही कहा। लालू बिहार से आगे सोच नहीं पाए। अब ममता पर दोष लगा रहे हैं बिहार की स्लोपोइजिनिंग का। पिछले २० साल से रेल बजट से यही दिखता है कि रेलवे पूरी तरह से मंत्री की बापौती होती है। मंत्री देश का नहीं एक राज्य का, एक जाति का और संभवतः एक परिवार का ही निकलता है, जिसे धोखे से पूरे देश की प्रगति की कमान सौंप दी जाती है। रेल बजट में पहले हर गाड़ी बिहार जाती थी तो अब इसका रुख पश्चिमी बंगाल की ओर है। अगर यही होना है तो क्यों न रोटेशन सिस्टम शुरू कर दिया जाए, मंत्रालय फिक्स कर दिए जाएं कि अमुक बार अमुक राज्य का ही मंत्री बनाया जाएगा। कमसे कम इससे पूरे देश का विकास तो सुनिश्चित हो जाएगा। ममता, पासवान, नीतीश, लालू और फिर ममता। रेल निरंतर एक विशेष हिस्से में ही प्रगति कर रही है। सिर्फ रेल पटरियों पर ही नहीं मंत्री का प्रभाव भर्तियों पर भी खूब पड़ता है। रेलवे में पिछले बीस साल में भर्ती हुए लोगों के आंकड़े निकाल लीजिए, इनकी तुलना पुराने आंकड़ों से करें। आप पाएंगे कि एक राज्य के लोग अचानक बहुत ही विद्वान हो गए हैं और भर्ती में उनका प्रतिशत बढ़ा है। अन्य राज्य फिसड्डी होते चले गए। यह सब तब होता है, जब हम आस्ट्रेलिया पर नस्लवाद और क्षेत्रवाद का आरोप मढ़ते हैं। हमारे मंत्री और नेता सबसे ज्यादा क्षेत्रवादी आपको दिखेंगे और साथ ही दूसरों पर क्षेत्रवाद का आरोप लगाते भी दिखेंगे। असल में जो खुद क्षेत्रवादी होते हैं, वही दूसरों पर सबसे ज्यादा इसके आरोप लगाते हैं। असल में उनकी दृष्टि यहीं तक सीमित होती है। ममता के रेलमंत्री बनने से उम्मीद की जा सकती है कि रेलवे के परीक्षा परिणाम भी बदलेंगे और अब पश्चिमी बंगाल के परीक्षार्थियों का सफलता प्रतिशत बढ़ेगा। बाकी नॉर्थ, साउथ और वेस्ट वालों को अभी इंतजार करना होगा। वह कब योग्य होंगे यह तो वक्त ही बताएगा। पंजाब और हरियाणा वाले तो पहले इसीके चलते कि यहां अपने को कोई नहीं पूछेगा। लोकसभा की कुल मिलाकर १० या १३ सीट, इनके दम पर कोई कैसे रेलमंत्री बनेगा। इसलिए बेचार चुपचाप विदेश निकल जाते थे। अमेरिका हो, कनाडा हो या इंग्लैंड अपनी योग्यता का परचम भी इन्होंने फहराया, पर रेलवे बोर्ड की परीक्षा पास करना अभी इनके बस की बात नहीं है। परीक्षा तो मुंबईवालों से भी पास नहीं होती, वो तो कहते हैं हमें परीक्षा की सूचना ही नहीं दी जाती। नौकरियों के विग्यापन निकलते थे, महाराष्ट्र में नहीं छपते। वे लड़ाई झगड़े पर उतर आते हैं। क्षेत्रवाद फैलाते हैं। साउथ वाले उत्तर और पूर्व वालों से पहले ही ज्यादा उम्मीद नहीं रखते। इसलिए साइंस और तकनीक में अव्वल बने हुए हैं, क्योंकि सिफारिश के दम पर आप अविष्कार नहीं कर सकते। इसके लिए आपको ही खटना पडे़गा। ममता दीदी से हम यही अनुरोध कर सकते हैं, भले ही आपको बंगाल की मुख्यमंत्री बनना है, मगर आप पूरे देश की रेलमंत्री है। यह पहला बजट तो चलो ठीक है। भविष्य में थोड़ा ध्यान रखिएगा। आप पूरे देश की दीदी हैं। पूरा देश आपको मनता है। इसलिए यहां कोई राज्य पराया नहीं है। पंजाब की दिक्कतें समझें, जो रेल परियोजनाएं २० साल पहले बजट में घषित हुईं, वह अब तक पूरी नहीं करवाई गई हैं। उन्हें उनका घोषित फंड ही नहीं मिल पाया और समय बढ़ने के साथ-साथ लागत बढ़ती गई। पंजाब तो एक उदाहरण देश के अन्य हिस्सों का भी ऐसा ही हाल है।